Monday, October 20, 2014

चीन व् भारत की चिन्ता

चुनाव समर ख़त्म हुआ। आपसी रस्साकसी को विराम दे कर अब प्रधानमंत्री जी को विदेश नीति पर संजीदगी से ध्यान देने की ज़रुरत है। माना की पाक सीमा पर अशांति है। यह भारतीय चुनावी वादो के लिहाज़ से भी महत्वपूर्ण है। और मीडिया के चाट के दर्ष्टि से भी। मगर भारत के लिए अति महत्वपूर्ण चीन के साथ स्पर्धा है। जिस पर दक्षिण एशिया के साथ साथ पूरे विश्व की गहरी नज़र है। क्यों की हमारी महत्वकांक्षी सीमा सड़क योजना जिस पर हम ७ अरब डॉलर खर्च करने की योजना है। जो की हमारी सड़क योजनाओ के लिहाज़ से भी बहुत बड़ी है। और हमें इस योजना  को अंजाम तक पहुचना ज़रूरी है। दूसरी तरफ २०१५ तक चीन के साथ व्यपार को १०० अरब डॉलर तक लेजाने की योजना शि जिनपिंग के साथ मिल कर आप ने बनाई है। माना की चीन ऐसी ही परियोजनाओं को पाकिस्तान से लगती हमारी सीमाओ तक पहले ही अंजाम दे चूका है। मगर मेरा आंकलन यह है की अभी एक लम्बे समय तक चीन के साथ हमारे सीमा विवाद सुलझते नज़र नहीं आ रहे हैं। क्यों की चीन इस वक्त खुद को अगली दुनिया का लीडर   मनोवैज्ञानिक तोर पर मान चूका है। और अपना मुख्य प्रतिस्पर्धा भारत के साथ मान चूका है। उसकी इस सोच के आधार हाल ही में की जा रही अर्थशाष्त्रीयो की भविष्य वाणिया भी कहा जा सकता है। ऐसे हालत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक परिपक्व डिप्लोमेसी के साथ आगे बढ़ना चाहिए। यह वक्त विरोधी पार्टियों के तीखे सवालो और और भारत के दूधमुहे मीडिया के जाल से निकल है। और चीन की चिन्ताओ व् भारत की चिन्ताओ को सधे हुए ढंग से निपटारा करते हुए चीन के साथ मैत्री पूर्ण माहोल में भारत को ऊंचाइयों तक लेजाना चाहिए। जिस का ख्वाब भारत की जनता और पूरब पश्चिम मिल कर देख रहे हैं। जय हिन्द  

Monday, October 13, 2014

फंड का बहना भी नहीं चलेगा

अगर भारत के प्रधानमंत्री की इच्छा है की देश का सच मुच निर्माण हो और देश विश्व आर्थिक महाशक्ति बने। रास्ता बहुत ही आसान है। केंद्र सरकार अगर सचमुच गाँधी का भारत बना ना  चाहती है। भारत के ५४३ गांव पांच साल में विकास करने से क्या होगा सिवाय इस के की आप के सांसद मीडिया कवरेज में बने रहेंगे। रोड मेप बिलकुल आसान है।
भारत के हर गांव में टेक्नीकल  ट्रेनिंग अभियान चलाया जाये और इस काम की लगत मनरेगा से बहुत कम है। इसलिए फंड का बहना भी नहीं चलेगा।
गाँव गांव महिलाओ और गरीब तबके के लोगो को टेक्नीकल ट्रेनिंग दे कर इलेक्ट्रॉनिक छोटे छोटे रोज़ मर्रा के इस्तेमाल में आने वाले इलेक्ट्रॉनिक,कृत्रिम लकड़ी के उपकरण व् खिलोने ऐसम्बल करने मात्र को बढ़वा दिया जाये तो देश को खरबो रुपये की विदेशी पूँजी बचाने का मौका मिलेगा।गांव के सम्पन लोगो को इन सब के ज़रुरत का स्टोर खुलवाया जाये। और अगर कुछ इम्पोर्ट करना है तो खुद गोवेर्मेंट सर्किट और ज़रूरी लगने वाले सामान बने की मशीने मंगवाए रिसर्च सेंटर खोले। वेस्टेज से बनने वाले घरेलु सामान की रॉ मटीरियल बनाने वाली इंडस्ट्री को बढ़ावा दे।  और भी बहुत कुछ किया जा सकता। ज़ियदा लिखने का मोड़ नहीं है। मगर शुरुआत यहाँ से हो तो हो गया भारत निर्माण। और दुश्मन की हार भी साथ ही साथ तय है। जय हिन्द। मुझे उम्मीद है देश भगत प्रधानमंत्री जी मेरे लेख पर विचार करेंगे। जय हिन्द।  

Wednesday, October 1, 2014

इस क्षण प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा का भारत के लिए क्या महत्व था

इस क्षण प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा का भारत के लिए क्या महत्व था। दरअसल भारत और चीन के बीच भविष्य को ले कर एक अद्रष्य होड़ जारी हो चुकी है। जिस प्रकार दुनिया भर के  अर्थशात्रियों का मानना है की आने वाला समय ऐसिया का होगा। इसके मुख्य दावेदार भारत और चीन ही है। जब की प्रधानमंत्री ने अमेरिका में इसकी घोसणा भी करदी है। यही कारण है की भारत और चीन अपने अपने अस्तर पर भारतीय उपमहाद्वीप में इस की भूमिका पट्टी भी तैयार करने में जुट गए है।  रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण दक्षिण चीन सागर में वियतनाम की बन्दरगाह भारतीय नौसेना और वायुसेना के विमानों के लिए पूरी तरह से खुला हुआ है।
जिस के जवाब में भारत के दक्षिण में श्रीलंका के साथ चीन ने अपने समझौतों में वहां के बंदरगाहों के स्तेमाल की अनुमति प्राप्त करली है।
 इधर वियतनाम भारत से सैन्य-तकनीकी सहयोग चाहता है। और भारत से हलके लड़ाकू विमान और मिसाइल खरीदना चाहता है। उधर चीन मालदीप और पाकिस्तान के सीमावर्ती अक्षेत्रों में अपनी स्त्तिथि मजबूत कर रहा है। इसी कड़ी में  भारत हिन्द महासागर में अपने हितों की रक्षा करने में जुटा है। भारत को इस वक़्त  अपने पडोसी  देशों के साथ अपने सम्बन्धो को मजबूत करने की अवशक्ता है।
तभी हम विश्व महाशक्ति बनने का सपना देख सकते हैं।
वियतनाम इस सफर में हमारा अच्छा सहयोगी साबित हो सकता है। ज्ञात रहे वियतनाम की सेना दुनिया में पाँचवे नम्बर की सबसे बड़ी सेना है और दक्षिण-पूर्वी एशिया की तो वह सबसे बड़ी सेना है।
यदि चीन भारत की चिन्ताओं की कोई परवाह न करते हुए पाकिस्तान के साथ अपना सामरिक सहयोग जारी रखे हुए है। तो हमें भी अपने हितों को ध्यान में रखते हुए  वियतनाम के साथ रिश्तों का विकास करने ज़रूरत है। यह इस लिए भी ज़रूरी है कि भारत की यात्रा करने से पहले शी चिन फिंग ने श्रीलंका और मालदीव की यात्राएँ कीं।
चीनी राष्ट्र अद्ध्यक्ष की यह यात्राएं हमारे प्रधानमंत्री के पडोसी देशो के दौरे का रणनैतिक जवाब था।
मेरा मानना है की चीन हमें घेरने की नीति अपना रहा है और हमारा परम्परागत साथी रूस भी इस समय भारत के लिए कुछ ज़ियादा सहयोग करने की स्तिथि में नहीं है।
 इस लिहाज से प्रधानमंत्री का अमेरिकी दौरा भारत के लिए अति महत्वपूर्ण था।
 भारत अगर इस यात्रा को और गम्भीरता साथ रणनीतिक हतियार बनाता तो भारत के हित में एक बड़ा कदम हो सकता था।
क्यों की अमेरिकी हथियारों के लिए भारतीय बाज़ार अत्यंत महत्वपूर्ण है।
अमरीकी सैन्य उद्योग आजकल एक कठिन दौर से गुज़र रहा है। वड़े पैमाने पर अमरीकी हथियारों की बिक्री अमरीकियों की इस संकट से बचने में मदद कर सकती है।
इसलिए वाशिंगटन इस बात के लिए हर संभव प्रयास करता कि यूरोपीय और रूसी प्रतियोगियों को भारतीय बाज़ार से बाहर धकेल दिया जाए।
इसी मोके का महत्व पूर्ण लाभ उठाया जा सकता था। और एक कूटनीतिक वार चीन पर किया जा सकता था।
16-17 अक्टूबर को नई दिल्ली में होने वाली बैठक में सीमा विवाद संबंधी सभी विषयों पर बात होगी। उस वक्त भारत के अमेरिका के साथ रिश्तो की गर्माहट का चीन की रणनीति पर गहरा प्रभाव छोड़ा जा सकता था। अपितु मुझे प्रधानमंत्री की इस यात्रा में विदेश मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, और कूटनीतिक सलाहकारों के आपसी तालमेल का भरपूर अभाव दिखा। में समझता हूँ प्रधानमंत्री जी को मेरी इन चिन्ताओ पर विचार करने की अवशक्ता है।

कृपिया शब्दों की गलतियों पर ध्यान न दिया जाये।
क्यों की गूगल देवता के उपकार से लिखी गई हिंदी है।