Sunday, December 13, 2015

जिससे प्यार के तीर चलें, वो कमान बनु तो बात बने।

जलती दुनिया में शबनम का, तूफ़ान बनु तो बात बने
जिससे प्यार के तीर चलें, वो कमान बनु तो बात बने।
आदम की औलाद हूँ में, यह सोच के में मगरूर नहीं
मायूस हूँ यूँ इक अच्छा सा, इंसान बनु तो बात बने।
लाखो पेड़ परंद चरिन्दे, मेरे जीने का सामान हुए
इनकी हिफाज़त करने का, ऐलान बनु तो बात बने।
हर रोज़ चमन में जाल नया, सैयाद उठाये फिरता है
बेखौफ वतन को करने का फरमान बनु तो बात बने l.
पैगाम-ऐ-अमन हर गुल का चमन आज़ाद क़बाएँ करने को
शम्शीरे कलम की वाहिद में,जो म्यान बनु तो बात बने।
जिससे प्यार के तीर चलें वो कमान बनु तो बात बने........
'''''वाहिद नसीम''''

Tuesday, October 27, 2015

वाशिंगटन को चीन के साथ उलझने के लिए एक मोहरे की ज़रुरत है

एक जायज़ा लेते हैं तीसरे विश्व युद्ध के बनते हालातो पर।

सबसे पहले सीरिया > सीरिया में रुसी फौजे ''ईसिस'' के खात्में के बिलकुल नज़दीक पहुँच गई हैं और सीरिया के दुसरे सरकार विरोधी गुट भी गुटने टेकने के बिलकुल करीब है। मगर सउदिया अभी भी सिया सुन्नी का खेल अमेरिका की शह पर खेलने की कोशिशों में लगातार बना हुआ है ताकि छेत्र में शांति न हो और अमेरिका खाड़ी में बना रहे। मगर रूस की चुनौती अमेरिकी नीतियों के खिलाफ मुखर हो चुकी हैं और अमेरिका के पैर उखड रहे हैं।

अब थोड़ा बढ़ते हैं मध्य एशिया की ओर> रूस चीन ईरान का मानना है की अब ''ईसिस'' लड़ाके अफगनिष्ठान की ओर भाग रहे हैं। और वहाँ नई भर्ती भी कर रहे हैं आने वाले दिनों में तालिबान के साथ मिल कर एक बड़ा खेल शुरू करने के फ़िराक में है। रूस का मानना है की ''ईसिस'' का आंतक  अफगान से रूस और भारत को खतरा पैदा करेगा। दरअसल रूस अफगानिस्तान में भी सीरिया की तर्ज़ पर हमले कर के ''ईसिस'' और तालिबान के पैर उखाड़ना चाहता है जिसके बाद इस छेत्र में अमरीकी चुनौती ख़त्म हो जायेगी। मगर इस छेत्र में अमरीकी हित इस वक़्त आखरी किरण की तरह है क्योंकि मसला अफगान नहीं रूस और चीन पर दबाव बनाये रखने के लिए अफगान पाकिस्तान अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण ठिकाना है।

अब ज़िक्र चीन का आया तो हमें यह भी समझना होगा की चीन समस्त एशिया के साथ साथ यूरोप में भी अपने कारोबारी पांव जमा रहा है दूसरी ओर रूस के गुर्बाचोफ़ के जैसा कोई मोहरा चीन को रोकने या तोड़ने के लिए अमेरिका अभी तक नहीं खोज पाया है। जबकि जापान में अमरीकी इन्वेस्टमेंट वाली कंपनिया और खुद अमेरिका की निजी कंपनियों को चीन से कड़ी चुनौती मिल रही है। रूस और चीन के गठजोड़ ने पूरी एशिया में अमेरिकी नकली डॉलर के खेल को ख़त्म करने की जैसे ठानली है और विकल्प के तोर पर बिर्क्स का गठन कर दिया है जिसके जरिये डॉलर की मौत तय हो चुकी है।
अब गर डॉलर गए वक़्त की कहानी बनता है तो अमेरिका भी गए वक़्त की कहानी हो जायेगा मगर क्या इतनी आसानी से अमेरिका मैदान छोड़ देगा या कुछ नए उपाए नए दोस्तों को खोजेगा बात नए की चली तो याद आया भारत भी तो अमेरिका का नया मित्र है।

अब थोड़ा भारत को ओर भी चलें।> भारत का रुझान अचानक वाशिंटन की ओर क्यों बढ़ा क्या वो भारत की ज़रुरत है या कोई बड़ा खेल ?
अगर हम थोड़ा बारीकी सी अध्यन करे तो दिखाई पड़ता है की अचानक दक्षिण एशिया खास तोर पर चीन नेपाल भारत पाकिस्तान में हलचल बढ़ गई है। जैसे पाकिस्तान को अमरीका ने तालाब किया है बलोचिस्तान की में आवाज़े बुलंद हो रही हैं भारत में सामजिक बटवारा हो रहा है असंतोष चारो तरफ दिखाई देने लगा है राष्ट्रवादी, सेक्युलर, पाटीदार, साऊथ नॉन वेजेटेरियन,मुस्लिम , दलित , स्वर्ण , अचानक पूरे उफान पर आगये हैं। क्या यह महज़ इत्तफाक है या इसके पीछे कोई बड़ा खेल है।
अचानक अरुणांचल प्रदेश में 6 अरब डालर के एक राजमार्ग के निर्माण की योजना बनाने का काम लगभग पूरा कर लिया की खबर आगई है और साथ-साथ मोदी ने दक्षिण चीन सागर में स्थिरता के आह्वान में अमरीका का समर्थन किया है उधर 27 अक्तूबर को अमेरिकी सेना के लार्सन नाम के पोत ने चीन के नानशा द्वीप समूह और उसके अधीन चट्टानों के पास समुद्री क्षेत्र में प्रवेश किया। इसके बारे में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू खांग ने कहा कि अमेरिकी पोत की इस कार्रवाई से चीन की प्रभूसत्ता और सुरक्षा तथा द्वीपों पर रह रहे लोगों और संयंत्रों की सुरक्षा को खतरे में डाला गया है । और इससे क्षेत्रीय शांति व स्थिरता को भी नुकसान पहुंचा है। चीन ने अमेरिकी सेना की इस कार्रवाई पर सख्त आपत्ति दर्ज करने के साथ विरोध किया है।
 चीन ने अपने प्रादेशिक प्रभुसत्ता, सुरक्षा और न्यायपूर्ण और सामान्य समुद्री हितों की रक्षा करता है। किसी भी देश की जान-बूझकर उत्तेजना का दृढ़ता के साथ निपटारा भी करेगा।

चलो अब वापस भारत आते हैं > मेरी पूरी पड़ताल का अर्थ यह की तीसरे विश्व युद्ध की पेश कदमी का कारण डॉलर और चीन हैं चीन के समर्थन में ही रूस सिरया पहुंचा है और अफगानिस्तान पहुँचने वाला है। मुझे डर है की डॉलर के समर्थन में भारत को मोहरा तो नहीं बनाया जा रहा है। क्यों की अब वाशिंगटन को चीन के साथ उलझने के लिए एक मोहरे की ज़रुरत है और मोहरा भी ऐसा जो चीन को उलझा सके जिसके कमांडर का विरोध ना हो जो कदम पीछे ना खींचे और पेंटागन उसकी पुस्त पनाही करे। में भारत के समस्त वासियों से आवाहन करता हूँ की हमें हमरी आर्मी हमारा देश और हम सबको एकजुटता का परिचय देने की ज़रुरत है। जय हिन्द 

Saturday, May 30, 2015

विशेषा आशीर्वाद प्राप्त अदानी समूह ऑस्ट्रेलिया में विवादों में घिर गई है।

 भारत में तत्काल प्रधानमंत्री विशेषा आशीर्वाद प्राप्त अदानी समूह ऑस्ट्रेलिया में विवादों में घिर गई है। वहां क्वींसलैंड के मूल निवासियों ने कंपनी की खनन परियोजना के खिलाफ वहां की अदालत का दरवाजा खटखटाया है जिनका कहना हे कि अदानी की कोयला खदान से उनका मूल निवास नष्ट हो जाएगा।
संभव है कि प्रधानमंत्री की और से यह उदहारण पेश किया जासकता की भारत में तो इतने लोगो के जंगली निवास नस्ट किये जा चुके हैं जितनी ऑस्ट्रेलिया की पूरी आबादी भी नहीं, देखो फिर भी हम विकास की सीढ़िया कैसे चढ़ते जा रहे हैं।
अब वहां के मूल निवासी कुछ यूँ भी कह रहे हैं कि जिस जगह खुदाई करने की योजना बनाई गई है, वह उनके लिए पवित्र है।
यह उनके लिए आध्यात्मिक महत्व की जगह है। खुदाई करने से उस जगह की पवित्रता तो नष्ट होगी ही, उनके लिए महत्वपूर्ण जगह भी खत्म हो जाएगी। हमारी ओर से जवाब दिया जा सकता है धार्मिक कार्ड हमारे साथ नहीं चलेगा क्यों की हम विश्व में इस खेल के सर्व उत्तम खिलाडी हैं। अब वहां के मूल निवासियों ने इस पूरी परियोजना का विरोध करने का फैसला कर ही लिया है। और इसके लिए उनके नेता अमेरिका और यूरोप भी जाने की धमकी दे रहे हैं।
कैसे बे शर्म हैं ऑस्ट्रलिया के निवासी होते हुए यूरोप और अमेरिका जाने की बात कर रहे हैं  ऐसे लोगो के लिए हमारे पास प्रयाप्त हथियार हैं। मुख्तार नकवी और गिरिराज को तेज गुस्सा आने की संभवना प्रबल हो गई है। अब इन लोगो को देश द्रोह के इलज़ाम में पाकिस्तान भेजा जा सकता है। अब एक और अड़चन भी सरकारी दामाद जी के सामने आगई है।
पर्यावरण के जानकार चिल्लाने लगे है कि कोयला खदान की इस परियोजना से ग्रेट बैरियर रीफ को भी नुकसान पंहुचेगा। हमारे पर्यावरण मंत्रालय के और उद्धरण दिया जाना चाहिए की देखो हमारे यहां १० वर्षों से ऐसे जितने मामले अटके थे हम सब क्लियर कर दिए अगर ठान लें तो करने से कोई रोक नहीं सकता।  मगर एक और धोंस विदेशी वित्तीय संस्थाएं देने लगी हैं एक फ्रांसीसी बैंक ने इस पर्यावरण वाले तर्क को मानते हुए परियोजना को कर्ज नहीं देने का फैसला भी कर लिया है। इस पर हम यह कहते हैं की इस परियोजना को फलीभूत करने के लिए भारितीय बैंक के मैनेजर को ऑस्टर्लिया बुला कर दो घंटे में लोन दिलवाया जा सकता है तो वो योजना क्या विदेशी पैसे की भूखी है। अरे हमने जनधन योजना में जनता से १०० /१०० रूपए जमा करवा कर जो पहले नए अकाउंट ATM पर फ्री बीमा होता था अब ३३० रूपए गरीबों से कहें के लिए ऐंठ रहे हैं। मूर्ख विदेशियों हमारे देश की जनता इतनी समझदार है की देश हित मीडिया के उस हर झूट को दिल से सच मानती है जो हमारी तत्काल सरकार के हितो को ध्यान में रख कर बोला जाये। भले ही हम शाम को ऑस्ट्रेलिया की कुल आबादी से ६ गुणाः लोग हमारे यहाँ भूखे सो जाते हों मगर १२ /१२ रुपये बैंको में जमा कर के सरकारी दामाद जी की पूरी मदद करने में सक्षम हैं। इस लेख को पढ़ कर कई लोग लाल मिर्च पर बेथ सकते हैं। फिर भी देश हित में उनका भी स्वागत है। 

Tuesday, May 5, 2015

ऐसा प्रतीत होता है जैसे भारत में पत्रकारों का अकाल पड़गया हो।

चीन यात्रा से पहल ही मीडिया ने पुनरवर्त्ती करते हुए कामयाबी के नगाड़े बजा दिए हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे भारत में पत्रकारों का अकाल पड़गया हो। या जनता के प्रति जवाब देही पूर्णतः समात होगई हो। किसी विदेश दौरे से पहले नीतियों पर प्रकाश डालने के बजाये दौरे पर मिलने वाली चाय पकोड़े बिस्तर वहां सेर सपाटे के संसाधनो की चर्चा शोर मचा मचा कर करते हैं। आइये हाल ही में कुछ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाये गए कदमो पर नज़र शानी करते हुए इस दौरे को देखते हैं।
हाल ही में भारत और अमरीका के बीच सहमति हुई कि अपनी सेनाओं की ज़रूरतों के लिये एक दूसरे के सैनिक अड्डों का उपयोग किया जाये। यह सूचना भारत की प्रभावशाली वेबसाइट defencenews.in द्वारा दी गयी।
इस सहमति के ब्योरे गोपनीय रखे जाते हैं। इतना ही मालूम है कि अब फारस की खाड़ी में मौजूद भारतीय सैनिक जहाज़ अमरीकी सप्लाई जहाजों के ज़रिये ईधन भर सकेंगे।
मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि यह समझौता गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत को जोखिम में डाल सकता है जिसका पालन भारत लंबे समय से करता आया है। समझौते के समर्थक कहते हैं कि सन् 2005 में हस्ताक्षरित रणनीतिक सहयोग संबंधी संधि के परिणामस्वरूप भारत को लगभग 10 अरब डालर मूल्य के आधुनिक अमरीकी उपकरण मिले। इस प्रकार अमरीका के साथ सैनिक सहयोग काफी लाभदायक हो सकता है।
संभव है कि फारस की खाड़ी में तैनात भारतीय जहाज़ उदाहरण के लिये बहरीन में स्थित अमरीकी नौसैनिक अड्डे में ईधन भरने और यहां तक कि मामूली मरम्मत करने के लिए जायेंगे। संभव है कि संयुक्त अमरीकी-भारतीय नौसैनिक अभ्यास आयोजित किये जायेंगे। लेकिन मेरे विचार से इन देशों की, नये समझौते पर काम की कोई दूसरी संभावना नहीं है।
निस्संदेह अमरीका भारत के सैनिक अड्डों का उपयोग करना चाहता है, खासकर चीनी प्रभाव की रणनीतिक रोक-थाम के लिये।
अब ऐसे हालात में प्रधानमंत्री के चीन दौरे से ज़्यादा अटकलें लगाने से कुछ हासिल नहीं होगा उपरोक्त कारणों के चलते ही चीन ने खुल कर पाकिस्तान का समर्थन किया है। भारतीय मीडिया प्रचारित अकारण ही दौरे की कामयाबी की सम्भावनाओ के ढोल पीट रहा है। 

Saturday, March 28, 2015

अरविन्द ने न जाने कितने चहरों की पहचान चरणबद्ध तरीके से चुरा कर अपनी पहचान बनाई,

एक सवाल हर मन में और मीडिया में उठ रहा है की आंदोलन से जन्मी पार्टियां यूँही क्यों टूट जाती है। असल बात अभी तक यह सामने आई है कि आंदोलन के वक्त ऐसे लोगो को ढून्ढ ढून्ढ कर जोड़ा जाता है जिनकी बात का असर जनता पर पड़ता हो जो खुद पहले से किसी ना किसी छेत्र में एक ब्रांड हो। आंदोलन के वक़्त तो जनता को जोड़ने के लिए काम आएं इनके चेहरों का स्तेमाल खूब किया जाता है। और बाद में उन्हें किनारे लगा दिया जाता है। जैसे अरविन्द मनीष संजय , इनकी ना कोई पहचान थी ना ही कोई उपलब्धि, तब उन्होंने, सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना, किरण, योगेन्द्र, शांति, प्रशांत, मयंक, आनंद, साजिया, और ना जाने कितने चहरों की पहचान चरणबद्ध तरीके से चुरा कर अपनी पहचान बनाई, और जब इन धूर्तों का असल मकसद पूरा होगया तब उन्हें लात मारदी। दुखद है /

Saturday, January 24, 2015

ओबामा की सम्मान यात्रा का भारत को नफा, नुकसान।


मौजूदा दौर में दक्षिण एशिया और पूरब पश्चिम की आर्थिक लड़ाई चरम पर है।
ऐसे में ओबामा की भारत यात्रा के कई कोण बनते हैं। भारत का अमेरिका की ओर झुकाव चीन और रूस के बीच बढ़ता सहयोग, मित्रता व् व्यपार भारत के परम्परागत मित्र रूस का ध्यान भारत की और आकर्षित करने में सफलता प्राप्त कर सकता है। दूसरी ओर चीन को सीमाओ पर सैयम व्  पाकिस्तान की ओर झुकाव, पाकिस्तान को फौजी, आर्थिक डब्लपमेंट में मदत दे कर भारत पर कूटनीतिक दबाव की रणनीति में बदलाव को मजबूर कर सकता है। भारत अमेरिका की बढ़ती नज़दीकियाँ चीन का दक्षिण एशिया पर एक छत्र राज और दक्षिण एशिया  से नेचुरल रिसोर्सिस के दोहन का सपना धूमिल कर सकता है। मगर महत्पूर्ण यह भी है की भारत का यह दांव कहीं उलटा तो। अमेरिका का ट्रेक रिकॉर्ड यह कहता है कि अमेरिकी कंपनियां जहां जाती हैं वहाँ की डोमेस्टिक ढांचे की परवाह किये बगैर अंधाधुन्द दोहन करती हैं। सामाजिक स्तिथि की परवाह किये बगैर व्यापारिक रणनीति के चलते कल्चरल बदलाव कर अपने व्यापार के लिए फर्टाइल ज़मीन तैयार करती हैं। उनके इस कार्य में अमेरिकी सरकार कूटनीतिक दबाव बनती है और कंपनियों के समर्थन में भरपूर सहयोग करती हे। अगर भारत में ऐसी स्तिथि पैदा होती है तो सामाजिक टकराव बढ़ने के हालात पैदा हो सकते हैं। ज्ञात रहे खाड़ी के देशो में हो भी रहा है।  खाड़ी के देशो में भी अमेरिका दोस्त बन कर ही आया था। खतरा नंबर दो। ek ही तीर से दो निशाने शाधने के लिए चीन को अलग थलग करने के लिए अमेरिकी रणनीतिकार चीन के साथ भारत को मोहरा बना कर रूस और चीन पर कूटनीतिक दबाव बनाने की कोशिश कर सकते है।  इन दिनों चीन द्वारा दी जा रही आर्थिक टक्कर को सिमित करने के कोशिशो में भारत चीन के बीच तनाव को बढ़ावा दे कर अपने हित साधने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। फिल हाल तो मेरे आंकलन में ओबामा का दौरा मोदी के अमेरिकी शो जैसा ही प्रतीत हो रहा है।  और किसी बड़ी घोषणा की संभावना ना के बराबर है। हाँ मगर में बड़ी बारीकी से भारत के इस नए चलन को देखने और समझने की कोशिश कर रहा हूँ। क्यों कि एक तरफ संघ परिवार का पश्चिम प्रेम और दूसरी और भारत के परम्परागत हितों के बीच मोदी सरकार किस करवट बैठती है देखना होगा। जय हिन्द 

Monday, October 20, 2014

चीन व् भारत की चिन्ता

चुनाव समर ख़त्म हुआ। आपसी रस्साकसी को विराम दे कर अब प्रधानमंत्री जी को विदेश नीति पर संजीदगी से ध्यान देने की ज़रुरत है। माना की पाक सीमा पर अशांति है। यह भारतीय चुनावी वादो के लिहाज़ से भी महत्वपूर्ण है। और मीडिया के चाट के दर्ष्टि से भी। मगर भारत के लिए अति महत्वपूर्ण चीन के साथ स्पर्धा है। जिस पर दक्षिण एशिया के साथ साथ पूरे विश्व की गहरी नज़र है। क्यों की हमारी महत्वकांक्षी सीमा सड़क योजना जिस पर हम ७ अरब डॉलर खर्च करने की योजना है। जो की हमारी सड़क योजनाओ के लिहाज़ से भी बहुत बड़ी है। और हमें इस योजना  को अंजाम तक पहुचना ज़रूरी है। दूसरी तरफ २०१५ तक चीन के साथ व्यपार को १०० अरब डॉलर तक लेजाने की योजना शि जिनपिंग के साथ मिल कर आप ने बनाई है। माना की चीन ऐसी ही परियोजनाओं को पाकिस्तान से लगती हमारी सीमाओ तक पहले ही अंजाम दे चूका है। मगर मेरा आंकलन यह है की अभी एक लम्बे समय तक चीन के साथ हमारे सीमा विवाद सुलझते नज़र नहीं आ रहे हैं। क्यों की चीन इस वक्त खुद को अगली दुनिया का लीडर   मनोवैज्ञानिक तोर पर मान चूका है। और अपना मुख्य प्रतिस्पर्धा भारत के साथ मान चूका है। उसकी इस सोच के आधार हाल ही में की जा रही अर्थशाष्त्रीयो की भविष्य वाणिया भी कहा जा सकता है। ऐसे हालत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक परिपक्व डिप्लोमेसी के साथ आगे बढ़ना चाहिए। यह वक्त विरोधी पार्टियों के तीखे सवालो और और भारत के दूधमुहे मीडिया के जाल से निकल है। और चीन की चिन्ताओ व् भारत की चिन्ताओ को सधे हुए ढंग से निपटारा करते हुए चीन के साथ मैत्री पूर्ण माहोल में भारत को ऊंचाइयों तक लेजाना चाहिए। जिस का ख्वाब भारत की जनता और पूरब पश्चिम मिल कर देख रहे हैं। जय हिन्द