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दंग्गा प्रायोजकों को सिर्फ इनसानी जिंदगियों में ज़हर घोलना आता है

भारतीय जनता को क्या आज यह समझने की ज़रोरत नहीं की राज गद्दी हासिल करने को जिस तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाँव में धार्मिक उन्माद का ज़हर घोल दिया गया है। क्या इस से बड़ी क्रूरता हो सकती है। आज हजारों साल के ग्रामीण सोहार्द के ढांचे को छिन्न भिन्न कर दिया गया। ग्रामीण सोहार्द की आत्मा को लहू लुहान करदिया गया है। बेहद अफसोस नाक है। यह फसाद की ज़हरीला बीज बोने वालों को इतना भी ख़याल ना रहा की गंगा जमनी तहज़ीब को उन्होंने ने जिस जहन्नुम में धकेल दिया है अब इसे शांत होने में सदिया लगेगीं। नफरत का यह ज़हर गाँव के परिवेष में इसलिए भी और खतरनाक होजाता है की गाँव की रंजिश तो पीढ़ियों तक चलती है। और इसलिए भी खतरनाक है की अब जिस तरह गाँव से निकल कर लोग अपने अपने बाहुल्य इलाको में जा रहे हें उस से समाज का बटवारा जिस तरह होगा उसका मतलब साफ़ है की यहाँ सकती संतुलन हो जायेगा और दंगे सिविल वार में बदल जायेंगे। हजोरों साल पहले जिस तरह कबीले एक दुसरे पर हमले करते थे वही आज फिर हम उसी दिशा में चल पड़े हें। agr इसे अभी राजनीती से ऊपर उठ कर रोक ना गया।तो छोटी सरहदें बनना तय है। इलेक्शन अभी दूर हें जो दंगों के इंजिनियर वो अपनी इंजिनयरिंग का कमाल चुनाव तक दिखाते रहेंगे। चुनाव के बाद वो दंगों के हमनवा फिर ग्रामीण रुपी दंगा यन्त्रों को देखने भी नहीं आयेंगे जिस तरह बंजारा कह चूका है की मेने जिस के लिए काम किया जिसे भगवान् मानता रहा उसने मेरी खबर तक ना ली। उसी तरह यह दंग्गा यंत्र उसी भगवान् की कृपा का इंतज़ार करेंगे और आदालतों के चक्कर काटेंगे और फिर उन्ही ग्रामीणों से सहयोग मांगेगे जिन्हें आज अपने गाँव से निकलने पर मजबूर कर दिया गया है। क्यों की इन दंग्गा प्रायोजकों को सिर्फ इनसानी जिंदगियों में ज़हर घोलना आता है। एंटी पोइजन इनकी दूकान में बिकता ही नहीं। में सवाल पूछता हूँ उन लोक ठेकेदारों से जिन्हें उन्होंने आपसी नफरत की घिनोनी आग में में झोंक दिया है क्या वो चुनव के बाद अपने आकाओ से इस आग को बुझवा सकते हें? हरगिज़ नहीं क्यों की आज तक एस कभी नहीं हुआ। तमाम पार्टियां जिस तरह इन दंगो से राजनेतिक लाभ उठाने में लगी है। क्या वो पार्टिया दंगों मे अपनी जान गवां चुके किसी एक भी जिंदा कर सकते हें ? वो किसी का भाई होगा कोई बहन राखी के दिन उसका इंतज़ार करेगी , वो एक किसी का पति होगा कही कोई मांग सिन्दूर ना भर सकेगी। वो एक किसी का बाप होगा कहीं कोई पापा के आने और तोफिया लेन के ना ख़तम होने वाले इंतजार में देहलीज़ पर बैठा होगा। वो एक किसी का बेटा होगा कही भूढ़ी निगाहें अपनी लाठी की राह तक रही होगी कहीं किसी माँ की कोख से हुक उठ उठ कर अपने बेटे को पुकार रही होगी। क्या तुम नहीं जानते की तुम जिसे सिर्फ एक दंगा यन्त्र समझ रहे हो वो अपने साथ कितने रिश्ते समेटे हुए है। हाँ यह सच की तुम तिलिस्म के धनि हो जनता को भड़काना तुम्हारे बाये हाथ का काम है हाँ यह सही है की जनता तुम्हारी चलो को समझने की औकात नहीं रखती , हाँ यह सही है की तुम्हे राज करने से कोई रोक नहीं सकता , मगर मेरे देश के महान नेताओं मेरी आप महानभावों से विनीति है की मेरे देश की जनता को बख्स दो क्यों की हम नादान है हम नहीं जानते की तुम हम पर कहा से और केसे वार करोगे। राज तुम्हारा है तुम्हारा ही रहेगा हम जनता है जनता ही रहेंगे। बस इतनी सी गुज़ारिश है की अपनी चुनाव की मोहर पर हमारा खून मत लगाओ। हमारे अंगूठो पर तो तुम्हारा अधिकार है ही हमें वोट तो तुम्हे देनी है वोट के साथ सर तो ना मांगों। क्यों हम भावुक हें आस्थावान हम अपना सर ख़ुशी ख़ुशी अपना सर देदेते हें। लिहाज़ा वो तुम लेलो हमरे सर सरहदों के लिए रहने दो।

Wednesday, August 14, 2013

प्रधानमंत्री व्/स नरेद्र मोदी व्/स वाहिद नसीम 15 अगस्त

आज मोदी का जवाब प्रधानमंत्री के नाम लाइव हुआ, मोदी ने प्रधान मंत्री से रुपये की गिरती वेल्यु पर सवाल तो पूछा मगर खुद केसे उसे संभालेंगे यह नहीं बता पाए, शायद इस लिए की वो खुद भी नहीं जानते की यह केसे हो सकता है, कोई बात नहीं आखिर देश की जनता क्या पता आप को ही प्रधानमंत्री बना दे तो में बता देता हूँ यह केसे करना है बस आप को रुपया मजबूत करने को आप को इम्पोर्ट घटना होगा एक्सपोर्ट बढ़ाना होगा, मगर यह क्या मोदी जी आप आज खुद ही गुजरात के किसानो को ट्रेक्टर इम्पोर्ट कर के देने का वादा कर गए राज्यों को डायरक्ट इम्पोर्ट ना कर पाने का दुःख और ज़ाहिर कर गए. आप ने कहीं भी अपने भाषण में प्रोडक्शन भड़ाने के तरीके पर कहीं नहीं की.  स्वेदेशी सामान को तरज़ी का कहीं ज़िक्र नहीं किया तो फिर किस तरह रूपया संभालोगे, आप अगर जानते भी होते तो नहीं बोलपाते क्यों की आप तो खुद अमेरिका प्रेम से पीड़ित हें, अब उन्होंने खाद्य शुरक्षा को उठाया तो उनकी यह जानकारी भी पूरी तरह अधूरी थी क्यों की मोदी जी ने इसे खाद्य गारंटी समझा या जनता को बताया, कोई खामी नहीं बता पाए बस इतना कहा की यह राज्य सकारें पहले से लागु कर चुकी हें ,, अब मोदी जी आप की जानकारी में थोडा सा इजाफा करदूं क्यों की जो विदेशी एजेंसी आप ने मीडिया प्लेन्स के लिए हायर की है वो आप को एसा  सबक नहीं सिखाएगी जो उनके नुक्सान का हो, प्रधानमंत्री कोर्स के लिए आपने गलत स्कूल में एडमिशन लेलिया शायद, मोदी जी यह खाद्य गारंटी बिल नहीं खाद्य शुरक्षा बिल है, वेसे तो यह अंग्रेजो के ज़माने से लागु है मगर इस का नवीनी करण किया गया है और २ रुपया ३ रुपया अनाज नहीं बलके खाने में क्या खाना है प्रोटीन कितना केलोरी कितनी और खाद्यान का कंटेंट क्या और केसा हो ४ साल के बच्चे को क्या और कितना 12 तक क्या और कितना 22 साल क्या और कितना इसी तरह बहुत से पैमाने तय हें , और मोदी जी जो आप अपने भाषण में गुजरातियों को कह रहे थे की विदेशी खाद्यान बाहर से राज्यों को मांगने की अनुमति नहीं है जिसका शायद आप को दुःख है तो दुखी मत होयेगा इस बिल में यही है विदेशी जेसा अच्छा खाद्य ही आप बाज़ार में उग़ा  कर बेचेगे और ना उगा पाए तो विदेशो से लाना पड़ेगा या अपनी ज़मीने विदेशियों को किराये पर देनी होगी ताकि इस बिल के मुताबिक देश भर में ब्लोक स्तर पर आयोग / नयाल्य खोले जायेंगे जो इस बिल के मानको  को लागु करवाएंगे। और जो दूकानदार अपने खाने की चीज़ों पर लिख कर कटेंट की मात्र नहीं बताएगा वो सजा पायेगा या ठेला/दूकान बंद कर के भाग जायेगा तब तो आप के विदेशी दोस्तों का काम और आसान हो जायेगा क्यों की मॉल कल्चर में तो सब लिखा होता है सो सब को वही से खाना होगा और मोदी जी ४ रुपया की चाय ७० रुपया की मिलेगी तो रुपया की वेल्यु खुद बा खुद बढ़ जाएगी। . मुझे शंका है मोदी जी ज़रा मुझे आप निशंक करदे तो आप की बड़ी महरबानी हो.  आप ने अमेरिका की तर्ज़ पर प्रधानमंत्री के भाषण का जवाब भाषण से तो दिया मगर तत्थ्य क्यों नदारद थे क्या आप अपने द्वारा सवालों के जवाब  जानते ही नहीं थे या आप को भी इसी पथ पर चलने की इच्छा है इस लिए देश वासियों से  सहीबात जानकरी छुपा कर देश को धोका नहीं दे रहे हें क्या ?

Sunday, May 26, 2013

क्या सरकारें सचमुच ऐसा करना चाहेंगी ?

आज का भी उतना ही अफ़सोस का दिन है जितना वहाँ बे गुनाह गाँव वाले मरे जाने का दिन था ,, मेने उस दिन भी हिंसा की निंदा की थी और आज भी कुक्रत्त्य की निंदा करता हूँ .. मगर दोस्तों मेरे जेसे साधारण लोगो की निंदा का क्या महत्त्व है कुछ भी नहीं ,, नक्सल' शब्द नक्सलबाड़ी से निकला है। यह पश्चिम बंगाल के एक गांव का नाम है, जहां 1967 में चारू मजूमदार और कानू सान्याल के नेतृत्व में उस वक्त की राज्य सरकार के खिलाफ एक हिंसक आंदोलन की शुरुआत हुई। विद्रोह की आग तब भड़की, जब भूमि विवाद के मामले में एक किसान पर एक भूमिपति के भाड़े के गुंडों ने हमला कर दिया। गांव के किसानों ने एकजुट होकर इसका जबर्दस्त विरोध किया और धीरे-धीरे यह आग पूरे राज्य में फैल गई। इसमें बड़ी संख्या में राज्य के छात्र शामिल हो गए। दूसरे राज्यों के युवाओं पर भी इसका गहरा असर पड़ा। देश के तमाम बुद्धिजीवी, लेखक और कलाकार किसी न किसी रूप में इससे जुड़ गए। 
आंदोलन के सूत्रधार चारू मजूमदार, कहना था कि किसानों और मजदूरों को सरकार और उच्च वर्ग से सत्ता छीन लेनी चाहिए क्योंकि यही उनकी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार हैं।तब पुलिस, दूसरे सरकारी अधिकारियों और यहां तक कि शिक्षकों को भी वर्ग शत्रु माना क्यों की वह भी गरीबो को शिक्षा नहीं देते थे। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय ने काफी कठोरता से इस आंदोलन को दबाया। इस क्रम में पुलिस ने कानून और मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाईं। 16 जुलाई 1972 को मजूमदार को गिरफ्तार किया गया और पुलिस ने इतनी यातनाएं दी कि 28 जुलाई 1972 को कोलकाता की अलीपुर जेल में उनकी मृत्यु हो गई। मुझे अफ़सोस सिर्फ इस बात का है की चारू मजूमदार की म्रत्यु के बाद इस आन्दोलन के खात्मे का भरम सरकार ने पाल लिया और जिन मुद्दों के कारण यह आन्दोलन जन्मा था वो आज भी जस के तस हें । वो गरीब भूमि हीन आदिवासी जंगली जीवन जीते हें क्या उनके उत्थान के लिए सरकारों को कुछ नहीं करना चाहिए था आज उन्ही उपेक्षित लोगो में से नक्सलवादी मओउवादी बनाना इस लिए आसान हे की उन्हें दोजून की रोटी का झांसा मात्र ही हतियार उठाने पर मझ्बूर करदेता है। अगर सरकार सचमुच इस दंस को उखड फेंकना चाहती हे तो गरीबो भूमि हीनो और बे रोजगारों को दबंगों और दमनकारी अफसर शाही से निजात दिलाकर मुख्य धारा में लाना होगा उनके पेट की अग्नि को शांत करना होगा, क्या सरकारें सचमुच ऐसा करना चाहेंगी ? यह अभी भी एक सवाल है ।

Monday, May 20, 2013

सोने की चिडया भारत


सोने की चिडया भारत
भारतीय इतहास में सोने के एक अहम रोल रहा है . यहाँ सोने के प्रति इतनी दीवानगी हे की  भारत को सोने की चिडया कहावत का सही अर्थ समझने की ज़हमत कभी नहीं की. सदियों से भारत सोने का एक बड़ा इम्पोटर रहा है ,, यहाँ के सामाजिक ढांचे में सोना इस तरह रचा बसा है की इसे निकलना नामुमकिन है .. हम भारतीय हजारों सालों से मसालों के बदले सोना लेते आए हें जिन मसालों को ईरानी तुर्किस यूरोप और खाड़ी को सोने की तरह बेचते आए हें ,, उन्ही के लिए हम सोने की चिडया थे ,, मगर उस वक़्त स्वर्ण युग था,, आज स्वर्ण युग नहीं हे करंसी युग हे ऑयल युग हे मशीन युग हे ,, मगर हम स्वर्ण मोह में आज भी जकड़े हें ,, पैदा होने पर सोना , मुंडन पर सोना , शादी में सोना , तलक में सोना ,,मरने में सोना .. और जो भारत्या इसे मोको पर सोना ना जुटा पाए उसे सामाजिक तिरस्कार का सामना करना पड़ता हे  ...सरकार ने आज तक जरूरी नहीं समझा की वह देश की भोली जनता को समझाए की उनके इस भूल के कारण देश को कितना घाटा होता इसी की ऊँची कीमत रूपये की इंटरनेशनल बाज़ार में कीमत गिराती हे जिस के कारण तेल महंगा होता हे देश में महगाई बढती . और सब से खतरनाक खेल यह हे की दुनिया में कुछ ख़ास नेटवर्क हमारे देश की इकोनोमी को ऊपर नीचे करने में समर्थ होपते हें . क्यों की वह हमारे सोने के प्रति मोह को भली भांति जानते हें,, और वह यह भी जानते हें भारत में सरकार इस पर कोई कदम नहीं उठाएगी .. क्यों की उसे वोट चाहिए, जय हिन्द  

Monday, January 28, 2013

गणतंत्र दिवस पर आधी आबादी भी एक नया ख्वाब


गणतंत्र दिवस पर आधी आबादी भी एक नया ख्वाब देख रही है . ऐसे ख्वाब पिछले ६५ वर्षों से लगातार देखे जा रहे हें यह केंडल मास्टर सिर्फ अपने नजदीकी महिला को दिखा रहे हें के हम बड़े महिलाओं का सम्मान करने वाले हें ,, और तथा कथित बुद्धि जीवी अख़बारों, चंनेलो, पर बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हें ताकि वो भी इस क्रांति का हिस्सा कहलायें,,, क्या किसी अंजुमन या जुलूस या चैनल या अखबार पर किसी ने असल जड़ कहाँ हे यह जानने या बताने की कोशिश की ,,,दर असल पुलिस का असली चहरा इसका जिम्मेदार हे .. दर असल कहानी लम्बी हे अपने चैनल पर उठाऊँगा, शोर्ट में बस इतना ही की रिपोर्ट अब मजिस्ट्रेट के यहाँ दर्ज हो और पोलिस को कार्रवाई की हिदायद कोर्ट से मिले २४ घंटे कोर्ट में रिपोर्ट दर्ज करने का इंतज़ाम हो और ओनलाइन ठाणे को दिशा निर्देश मिलें तो कुछ बात बने मगर एसा नहीं होगा क्यों की सभी पार्टियों की ज़मीनी राजनीति पुलिस की कारवाई होने देना या नहीं होने देना पर ही आधारित है,,, इसीलिए पुलिस शरीफ लोगो को ज़लील करती हे ताकि वो नेता के पास जाये उसका वोट पक्का हो जये तो तहरीर ली जाये विषय लंबा है उधार रहा ... अब अगर हिम्मत है तो इस मांग पर जलाओ केंडल खाली प्रेमिका को दिखने से क्या होगा
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Friday, January 18, 2013

एक बार फिर तहरीक ऐ ''कमल रोटी'' और तहरीक ऐ'' रेशमी रुमाल''

आज देश की जनता को यह समझना ज़रूरी है जिस दिन कोंग्रेस का महंगाई चिंतन भी अधिवेशन में शामिल  हो और उसी रात तेल के रेट बढ़ा दिए जाएँ तो यहाँ कम्पनियों के हाथ कितने मजबूत और भारतीय राजनीति कितनी लाचार है सहज अंदाज़ा लगा लेना चाहिए .माज़ी में विदेशियों के साथ किये गए अनुबंध आज भारतीय अर्थ व्यवस्था पर पूरी तरह कब्ज़ा कर चुके है और यह अनुबंध सिर्फ कोंग्रेस द्वारा नहीं अपितु उन सभी पार्टियों द्वारा किये गए हें जो सत्ता में रहे हें आज स्तीथी बिलकुल वेसी ही हो गई है जेसी जहागीर द्वारा ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ कलकत्ता एग्रीमेंट के बाद हुई थी, फर्क इतना है की पहले देश गुलाम हुआ था अब अर्थ व्यवस्था गुलाम हुई है ,, अब देश को एक बार फिर तहरीक ऐ ''कमल रोटी'' और तहरीक ऐ'' रेशमी रुमाल'' कीसे किसी तहरीक के बारे में सोचना होगा,,,, जय हिन्द  

Wednesday, December 26, 2012

ऐ मादरे वतन मेरी आवाज़ सुनो.

दरअसल इतने बड़े पैमाने पर आन्दोलन का रूप धारण करता यह रेप काण्ड सिर्फ इस काण्ड के लिए नहीं अपितु लोगो के मन में भ्रस्टाचार अत्त्याचार कानून व्यवस्था राजीनीति की सूरत के खिलाफ एक गुस्सा है, अन्दर दबे अपने गुस्से को अभी सही से जनता पहचान नहीं पारही है . 
और ना ही राजनेतिक गलियारों में इस आने वाले तूफ़ान की आहट का अंदाज़ा है ,
वजह साफ़ है की यह लोग अभी कम हें जो पढ़े लिखे जागरूख होने की कोशिश कर रहे हें, अन्ना आन्दोलन से लेकर रेप काण्ड तक जो लोग सडको पर दिखाई पड़रहे हें वो सिर्फ वही मुट्ठी भर लोग हें, जिन के दिमाग के पिंजरे में कैद डेमोक्रेसी का कबूतर परवाज़ करने को छटपटा रहा है,
मगर वह अभी खुद भी नहीं जानते की वो असल में चाहते क्या है उन्हें एक नए रहबर की तलाश है जो फ्रीडम का सही मतलब जानता हो,
मगर सदियों से भारत में चली आ रही रिया और राजा की प्रथा आसानी से हार मान को तैयार नहीं है ,
अभी ९५% रिया ५ % चौदरी, रंगदार, दबंग, अफसर शाही, नेता गिरी, टेग वाले राजा अपनी अपनी जगह प्राचीन भारत की तर्ज़ पर कायम हें,
इन ज़ंजीरो को तोड़ने के लिए अभी और ज्यादा आवाम का जागरूक होना ज़रूरी है,, मुझे लगता है की कई मोर्चो पर एक साथ लड़ना होगा
जिस से ग्रामीण भारत का जुड़ना अति आवशक , जब तक ग्रामीण भारत की ८०% महत्पूर्ण आबादी राजनेतिक सदयंत्र के जातीय जाल में फासी रहेगी तब तक मुट्ठी भर शहरी आबादी में से चंद जागरूक लोग कभी इस वयवस्था पर दबाव बनाने में सफल नहीं होंगे,, ऐ मादरे वतन मेरी आवाज़ सुनो.,,, जय हिन्द

आखिर डॉलर की गिरती कीमत भारत में क्यों आसमान छू रही है


आखिर डॉलर  की गिरती कीमत भारत में क्यों आसमान छू रही है ?
दुनिया नए मुद्रा-युद्ध की दहलीज़ पर खड़ी है। अमरीका के फ़ेडरल रिजर्व सिस्टम ने यह तय किया है कि वह अब प्रिन्टिंग प्रेस चालू कर देगा और लगातार डॉलर छापेगा। यूरोपीय सेन्ट्रल बैंक और जापान के बैंक को भी छूत की यह बीमारी लग गई है। अब ब्रिटेन का बैंक भी क़ाग़ज़ के इन टुकड़ों को बड़ी मात्रा में छापने जा रहा है।
अमरीका में यह जो मुद्रा-सूनामी शुरू हुई है, इसकी लहर पूरी दुनिया में फैल गई है, हालाँकि डॉलर का अनियंत्रित प्रसार सिर्फ़ नवम्बर में ही शुरू करने की योजना है। ब्राज़ील की मुद्रा रिआल की क़ीमत चढ़ने लगी है। मैक्सिको की मुद्रा पेसो की क़ीमत बढ़ने लगी है। पोलैंड की ज़िलोती और कोरियाई मुद्रा वोन का मूल्य भी ऊपर की तरफ़ जा रहा है। लेकिन चीनी मुद्रा युआन इस हाहाकार में भी शान्त है। ऐसा लगता है कि चीन के जनबैंक ने चीनी मुद्रा के विनिमेय-मूल्य को नियंत्रित कर रखा है। लेकिन डॉलर की गिरती हुई क़ीमत की वज़ह से युआन का मूल्य भी बढ़ेगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि अमरीका डॉलरों की यह जो बारिश करने जा रहा है, उससे डॉलर का मूल्य क़रीब 20 प्रतिशत तक गिर जाएगा। ऐसी हालत में चीनी युआन का मूल्य अपने आप बढ़ जाएगा। कमज़ोर यूरो और कमज़ोर येन भी चीनी युआन के मूल्य को बढ़ाएँगे। रूस के भूमंडलीकरण समस्या अध्ययन संस्थान के निदेशक मिख़ायल देल्यागिन का मानना है कि अब मुद्रा-युद्ध शुरू होने के आसार दिखाई दे रहे हैं। मिख़ायल देल्यागिन ने कहा :
इन मुद्राओं में निवेश करने वाले लोग बेचैन हैं। सचमुच, यह एक नई जंग की शुरूआत है, जिसे मुद्रा-युद्ध कहा जा सकता है। यह युद्ध तब और भी भारी और मुश्किल दिखाई देने लगता है, जब अमरीका और यूरोप के देश अपने यहाँ उत्पादकों को प्रोत्साहन देने के लिए अपनी-अपनी मुद्राओं की क़ीमत जानबूझकर गिराने लगते हैं।
अमरीका द्वारा जारी किए गए ऋणपत्रों का बहुत बड़ा हिस्सा चीन ने ख़रीद रखा है। चीन ने क़रीब 12 ख़रब डॉलर के ऋणपत्र ख़रीद रखे हैं। पिछले सात महीनों से चीन अमरीकी ऋणपत्रों में अपना निवेश लगातार बढ़ाता चला गया है। विगत जुलाई में ही उसने 2.4 अरब डॉलर के अमरीकी ऋणपत्र ख़रीदे हैं। रूस के एक और विशेषज्ञ यरास्लाव लिसावोलिक ने कहा -- अब लगातार डॉलर छापकर कृत्रिम रूप से अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करके अमरीका स्वतः ही अपने उन ऋणपत्रों की क़ीमत भी गिरा रहा है, जो उसने चीन को बेच रखे हैं। अब चीन जब अमरीका के सामने इन ऋणपत्रों को प्रस्तुत करेगा तो उसे उससे कम धन मिलेगा, जितना उसने इनमें निवेश किया था। यरास्लाव लिसावोलिक ने कहा :
विकसित देशों के बाज़ारों में चीन ने जो निवेश कर रखा है, उसमें चीन को घाटा उठाना पड़ सकता है। इसलिए चीन को अब अपने धन का निवेश दूसरे देशों में भी करना होगा। हमारा ख़याल है कि वह बहुत धीरे-धीरे ऐसा करेगा यदि अमरीका और दूसरे देशों के ऋणपत्रों में निवेशित धन को एकदम निकालने की कोशिश की जाएगी तो डॉलर मुँह के बल नीचे आ गिरेगा। इससे चीन को भी भारी नुक़्सान होगा। इसलिए चीन बहुत संभल-संभल कर क़दम उठाएगा। वैसे भी वह हमेशा सावधानी बरतता है।
आज चीन और क़रीब 30 देशों के बीच आपसी मुद्रा-विनिमय समझौते काम कर रहे हैं। इन देशों में रूस, जापान, दक्षिणी कोरिया और मलेशिया भी शामिल हैं। ये सभी देश चीन के साथ व्यापार करते हुए अपनी स्थानीय मुद्रा में हिसाब-क़िताब करते हैं। बीच में डॉलर या यूरो को नहीं लाते। डॉलर और यूरो का अवमूल्यन होते ही और बाज़ार के बदलते ही ये सभी देश इसके दोहरे फ़ायदे को महसूस करेंगे।
हो सकता है कि डॉलर की यह सूनामी ब्रिक्स-दल के सदस्य देशों ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिणी अफ़्रीका को अपनी ही मुद्रा पर अधिक निर्भर रहने और पारस्परिक हिसाब-किताब में अपनी ही मुद्रा का इस्तेमाल करने की ओर ढकेलेगी। नई दिल्ली में ब्रिक्स दल के सदस्य देशों ने अपना विकास बैंक खोलने का जो निर्णय लिया था, अब जितनी जल्दी यह बैंक अपना काम शुरू कर देगा, इन देशों की राष्ट्रीय मुद्राएँ उतनी ही मज़बूत और स्थिर होंगी।

बीजिंग। चीन के 80 फीसदी लोगों को भारत से 1962 में हुए युद्ध के संबंध में जानकारी नहीं है

50 साल बाद अचानक भारतीय राजनेता और मीडिया को 1962 वार की याद आगई , मगर यह सब अचानक नहीं हुआ इस पर  पिछले कुछ दिनों से लगातार कहीं दूर काम चल रहा था, आप का यह जानना बेहद ज़रूरी है की इस वक़्त महत्पर्ण भारतीय मीडिया संस्थानों में विदेशी धन निवेश हो चूका है जिस का मकसद यहाँ से मुनाफा कमाना नहीं अपितु मुनाफे के लिए धरातल तैयार करना है इसी कड़ी को एक कदम आगे बढ़ाते हुए पिछले दो दिनों से पश्चिमी और भारतीय मीडिया जिस तरह 1962 की वार को याद दिला कर ज़ख्मो को कुरेदने की कोशिश कर रहा है उसके पीछे का मकसद भारत में चीन के खिलाफ नफरत पैदा कर भारतीय बाज़ार को मुकम्मल अपने हाथो में केद  करने की साजिश मात्र है वरना क्या गरज थी की अमेरिका अपनी एजेंसी के माध्यम से भारत के खिलाफ प्यार और नफरत का र्सवे चीन में करता मगर र्सवे ने अमेरिका की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है .
बीजिंग। 1962 के युद्ध के 50 र्वष बाद चीन के मीडिया ने कहा है कि दोनों देशों ने व्यापक रणनीतिक साझेदारी बनाने की दिशा में लंबा रास्ता तय किया है।
भारत-चीन के बीच युद्ध के पचास साल पूरे होने के मौके पर स्टेट-रन ग्लोबल टाइम्स द्वारा कराए गए एक र्सवे में यह तथ्य सामने आया है कि केवल 15 फीसदी चीनियों को उस युद्ध के बारे में पता है। र्सवे का मकसद यह जानना था कि 1962 के युद्ध को चीनी किस रूप में याद करते हैं और भारत के बारे में अब उनकी क्या राय है। आश्र्चयजनक रूप से अमेरिकी एजेंसी के नकारात्मक परिणाम के उलट प्रतिक्रिया सकारात्मक मिली।
र्सवे के अनुसार, 80 फीसदी से ज्यादा चीनी भारत के बारे में तटस्थ और सकारात्मक रुख रखते हैं। वहीं अधिकांश का मानना है कि दोनों पड़ोसी मुल्कों को युद्ध की काली छाया से दूर रहना चाहिए।
भारत के बारे में उनके क्या विचार हैं, इस प्रश्न के जवाब में 78 फीसदी लोगों ने अपना तटस्थ रुख र्दशाया। जबकि मात्र 16.4 फीसद लोगों ने भारत को नापसंद किया। र्सवे में कहा गया है कि लगभग 40 फीसदी को लोगों को लगता है कि भारत-चीन सीमा पर सैन्य संर्घष की संभावना है जबकि 39 फीसदी से ज्यादा लोगों की इसकी संभावना कम दिखती है। वहीं लगभग 17 फीसदी लोगों ने ऐसी किसी संभावना को सिरे से खारिज कर दिया। 61 फीसदी लोग भारत-चीन के बीच के संबंध कोसामान्य या अच्छा मानते हैं जबकि 34 फीसदी से ज्यादा लोगों ने दोनों देशों के मनमुटाव में अब स्थिरता आने की बात मानी है।
गौरतलब है कि इससे पहले एक अमेरिकी एजेंसी पीइडब्ल्यू के र्सवे में यह कहा गया है कि 62 फीसदी चीनियों की भारत को लेकर नकारात्मक सोच रखते हैं जबकि 23 फीसदी लोग ही भारत के पक्ष में हैं।
चीनी मीडिया का कहना है कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद नहीं सुलझ सकने के बावजूद दोनों देशों ने प्रगति की है। इसके साथ ही मीडिया ने चेतावनी दी कि अमेरिकी और पश्चिमी देशों के मीडिया एशिया के इन दो बड़े देशों के बीच विरोध का बीज बोने का प्रयास कर रहे हैं।
बीजिंग। चीन के 80 फीसदी लोगों को भारत से 1962 में हुए युद्ध के संबंध में जानकारी नहीं है। वहीं इतने ही फीसदी लोग भारत को लेकर पॉजिटिव रुख रखते हैं। साथ ही चीन में रहने वाले अधिकतर लोग यह चाहते हैं कि दोनों पड़ोसी देशों को विवादों की छाया से बाहर निकलना चाहिए।
में आप लोगो के सामने कुछ प्रमाण अटेच कर रहा हूँ ,,,जय हिन्द 

बंद गली का आखरी मकान



 विश्व में जारी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में अमेरिका आज बंद गली का आखरी मकान है। हालिया एक शताब्दी से विश्व में जो क़ानून-व्यवस्था जारी है उसके समस्त पहलु अमेरिका की गली पहुँच कर बंद हो जाते है और विचारक एवं बुद्धिजीवी उसके स्थान पर नई व्यवस्था लाने की बात कर रहे हैं। मगर विश्व में मौजूद डेमोक्रेसी आज के समाज की बहुत सी आवश्यकताओं का उत्तर नहीं दे सकती और वह समाज के बहुत से मूल्यों व संस्कृतियों से विरोधाभास रखती है इसलिए हर राष्ट्र को चाहिये कि वह अपनी क्षेत्रीय विशेषताओं को ध्यान में रखकर सरकार और क़ानून बनाये जाने चाहिए ,
आज भारतीय राजनेताओ को भारत के प्रति ज़िम्मेदारी का सुबूत देने की आवशकता है मगर फिलहाल भारतीय राजनेताओं में तो सिर्फ अमेरिकी वफादार होने की होड़ सी लगी नज़र आरही  है , बराक ओबामा अपने इस् टर्न में अमेरिका के लिए जियादा से जियादा नोकरी जुटाएगा क्यों की  अमेरिका को शायद पचास साल बाद यह समझ आने लगा है की कागज़ के टुकड़े अर्थ व्यवस्था नहीं हो सकते, यह महज़ कुछ साल का छलावा मात्र हो सकता है सम्पूर्ण खुश हाली नहीं , जो निजाम खुद अमेरिका और यूरोप में फेल हो चुका है भारत में उसी कंपनी राज को ला कर भारत को क्यों बरबाद करने पर तुले हें, जब यह सब जानते हें की भारतीय परस्तिथिया इस आर्थिक हमले को झेलने में सक्षम नहीं हें ,, और कारण यहाँ की असंतुलित आबादी और आबादी का रोज़गार जुटाने का तरीका भिन्न होना है .. देश में कोई इमानदार नायक इस सदी में उभर कर सामने ना आया तो अगले 70 साल भारत अराजकता का शिकार रहेगा ,,,, जय हिन्द    

नाताज़ुर्बे कारी उत्तर परदेश मेन जल्दी हे देखने को मिल सकता है,,

अखिलेश जिस तरह मीडिया के उकसावे में मेन ऑफ़ सीरिज़ को दरकिनार करने की गलती कर रहा है , इस से भविष्य मेन सपा को बड़ा नुकसान होने की सम्भावना बढ़ गई है , यह नहीं भूलना चाहिए की मुस्लिम वोटर सिर्फ आज़म खान की बदोलत है, अखलेश समरथको को याद रखना चाहिए की मुस्लिम के लिए कांरेस अछूत नहीं है ,, और लोक सभा चुनाव सामने हें.. जबकि मेरा आंकलन है की नाताज़ुर्बे कारी ka namoona उत्तर परदेश मेन जल्दी हे देखने को मिल सकता है,,

डाईपर बदलने को ख़ास घर के कई मेड साथ भेजे गए थे ,,

उत्तर प्रदेश परिणाम . इस चुनाव में कोंग्रेस ने अपने इक्के को जोकर बना दिया सब से बड़ा घाटा कांग्रेस का ही हुआ है ,अब बुद्धि जीवी वर्ग को भी मान लेना चाहिए की अन्ना मूवमेंट का भी असर देखने को मिला , यह सीधे तो नहीं दिखाई दिया मगर एक विचार के रूप में हर वोटर के ज़हन में मोजूद था , जिसका रिज़ल्ट यह रहा की कांग्रेस का वोट पर्तिशत घाटा, और राहुल का इतना बड़ा फेल्यर खुद राहुल के कारन भी हुआ , राहुल की भाषण शेली इतनी प्रभाव हीन है की उनका भाषण फ़िल्मी लगता वो भी जूनियर आर्टिस्ट जेसा ,, अब उनके दरबारी गोबर को गोबर जी कह कर धोका दे रहे हें , चमचा गिरी इतनी चरम पर है की नवाबो के वक़्त में भी इस दर्जे के चमचे कम ही होते थे ,, महारानी और वजीर तो मशरूफ है अपने सगे दोस्तों के काम निपटने में , उन्हें चुनाव से जियादा इस बात की चिंता है की इसी टर्न में दोस्तों के सरे काम कायदे से हो जाये बाद में कोन जाने कांट्रेक्टर कोन हो , अभी तो रूपए की कीमत को गिरना है क्यों की कम डॉलर के बदले जियादा रूपए मिले क्यों की उन से फिर बाज़ार में एकल ब्रांड को ज़मीन खरीदनी है मल्टी ब्रांड को किसानो की ज़मीन बोंड करनी है ,, बाकि तो चलो खुद ही हो जायगा . विदेशी सामान के सामने देशी सामान हमारे लिए कितना शर्मसार करने वाला है यह तो मीडिया ही सब को सम्झादेगा , इस बार घरेलु उद्ध्योग बंद करवाने के लिए बी जे पी की तरह कांग्रेस को ड्रोप्सी जेसा जहर लोगो के तेल में नहीं मिलवाना पड़ेगा , क्यों की यहाँ तो जात पात की ड्रोप्सी इतनी हावी है की चिंता की कोई बात ही नहीं किसी भी काबिल इंसान को हम सता में कभी आने ही नहीं देंगे और आने भी क्यों दें वो हमारी जात का थोडाही ना है ,, चलो हम भूल भी जांए जात पात फिर भी हम किसी इमानदार को क्यों चुने वो हमारे गलत सलत काम थोडा ही ना करदेगा, अब हम भारतीय इतिहास भी क्यों पढ़े हमने तो इस काम के लिए धर्म गुरुओ को रख रक्खा है वो जो कहते हें वही सही है , फिर हमें क्या फ़ायदा यह समझने का की १८५७ में असल में हुआ क्या था और झगडे की जड़ें कारोबार में ही छुपी थी और लोगो के बेरोज़गारी ने ही हिन्दू मुलिम एक करदिये थे , जिस तरह मायती के भ्रस्टाचार ने मुस्लिमो को एक करदिया और सरकार एस पी की बनवादी , हम तो भूल ही गए की हम बात राहुल बाबा की कर रहे थे , माफ़ करना दोस्तों ज़रा कलम फिसल गई थी , दरअसल राहुल के साथ नेताओं की जिस फोज को up भेजा गया था वो चुनाव जीतने नहीं बलके बाबा को चुनाव चुनाव खिलवाने भेजा गया था ,, मम्मी सब जानती है की बच्चे केसे पाले जाते हें इसी लिए डाईपर बदलने को ख़ास घर के कई मेड साथ भेजे गए थे ,, आखिर मम्मी को भी अपने कई ज़रूरी काम निपटने होते हें और समझदार मम्मिया परिवार को बच्चे के खेल में लगा कर अपने काम निपटा लिया करती हें

इसे में उनकी लाचारी समझू या नेताओ की दादा गिरी

आज मेरे होम टाउन में भी वोट डाली गई , मेने भी अपने मत का उपयोग करना चाहा , मगर अफ़सोस के राइट तू रिजेक्ट के लिए फार्म नंबर २७ ऐ मौजूद ही नहीं था पीठासीन अधिकारीयों ने मेरी मदद बहुत करना चाही अपने सभी कनसर्न अधिकारीयों से बात की एक घंटे की मुसक्कत के बाद भी बेचारे सभी को रिजेक्ट करने वाला वोट नहीं डलवा पाए . इसे में उनकी लाचारी समझू या नेताओ की दादा गिरी के चाहो या ना चाहो पसंद तो करना ही पड़ेगा ..

एक बार फिर भ्रस्टाचार के दानव की विजय होगी ...

एक बार फिर भ्रस्टाचार के दानव की विजय होगी ...
आज भारत वर्ष के लिए बहुत ही अहम् वक़्त है तमाम राजनेतिक जमात एक झंडे के नीचे कड़ी हें और एक महान भावना को हाइजेक कर लिया गया है ,अन्ना एंड टीम को घेर लिया गया है और परचार माध्यम जिन्होंने इस विचार को ऊँचाइयों तक पहुँचाया था आज वो भी राजनेतिक वार की शिकार हो चुकी हें , नये लोकपाल शगूफे में राम रहीम के खजाने और सामाजिक संस्थाएं जिन्होंने लोकपाल जेसा विचार धरातल पर उतरा वो खुद लोकपाल के उलटे वार में फस चुके हें , बस पत्रकारिता को लोकपाल के दायरे से बाहर रख कर उनके मुह पर लगाम लगादी गई , है आज परचार माध्यम भी जनता के खिलाफ बोलना शुरू कर चुके हें, जनता यानि अन्ना सहित उनके साथ खड़े तमाम लोग, अब एक नई परिभाषा ओर शुरू करदी गई है , की जो लोग भ्रस्टाचार के खिलाफ आनोलन में शामिल हें वो ही भारत नहीं है दर असल वो सिर्फ अन्ना एंड टीम के लोग हें, यह कहते हुए क्यों भूल जाते हें की अन्ना एंड टीम भी आम भारतीय ही हें , मुझे अचम्भा हो रहा है की की आन्दोलन में शामिल जनता को अब यह राजनेता भारतीय मान ने से ही इनकार करने लगे यह मनोबल देश की जनता ने ही बढाया है , एन सी पी का महाराष्टर जीतना इस देश के लिए अभिशाप बन गया है , महारास्ट्र में मिली विजय से पोलटिकल पार्टियों का मनोबल इतना बढ्गया है की लोकसभा में साडी पार्टियां अलग अलग भाषा में बोलती नज़र आयी मगर सब का निचोड़ एक ही था लोकपाल पास ना किया जाये बहाने अलग अलग थे मगर मकसद सबका एक ही था राजनेताओं पर कोई लगाम नहीं होनी चाहिए कोई कानून एसा ना हो जो राजनेतिक भ्रस्टाचार को रोक सके , हाँ सरकार ने तमाम पब्लिक बोडी नये कानून में ला कर यह सन्देश साफ़ कर दिया है की जनता को अपनी ओकात में रहना चाहिए वरना इस देश के मालिक पोलटिकल पार्टीज इसी ही सज़ा देंगी . अब यह देश इसे दोराहे पर खड़ा है जहां से दो रासते जाते हें , एक जो देश को नये निर्माण की ओर लेजाता है ओर दोसरा भ्रस्टाचार से भरे कुवे की ओर अब यह तो इस देश की जनता को ही तय करना होगा की भारत का भविष्य क्या हो, आने वाले सप्ताह में भारत का भविष्य तय होगा देखते हें जनता का इरादा क्या है ..अन्ना एंड टीम का मनोबल बहुत गिर गया है उनकी बातों में उत्साह अब नज़र नहीं आता जो बहुत ही निराशा जनक है .. मगर में यहाँ यह भी कहना चाहूंगा की इस में कुछ गलतिया अन्ना एंड टीम की भी हें क्यों कि कई मोको पर उन्होंने अति वादी भाषा का प्रयोग किया जिस के कारण जनता का एक बड़ा हिस्सा उनसे कट गया ओर अगर आने वाले आन्दोलन में सभी पार्टिया के खिलाफ आन्दोलन का रुख ना दिखाया तो यह आन्दोलन जनता के मनोबल को गिराने का काम करेगा , भ्रस्टाचार के खिलाफ एक महान करान्ति का दुखद अंत होगा . ओर एक बार फिर भ्रस्टाचार के दानव की विजय होगी ....

राज नेता हमेशा की तरह एक बार फिर बे वकूफ बनायेंगे और जनता फिर ख़ुशी ख़ुशी बन जाएगी ,

राज नेता हमेशा की तरह एक बार फिर बे वकूफ बनायेंगे और जनता फिर ख़ुशी ख़ुशी बन जाएगी , तमाम राजनेतिक दल एक प्लेटफोर्म के नीचे खड़े हें और जनता को अलग दिखने की योजना बखूबी तैयार करली है ,मुलायम,लालू ,माया , ने साफ़ करदिया है की वह कोई भ्रस्टाचार के विरोध में उठाये जाने वाले कदमो के साथ नहीं जा सकते क्यों कि इस के सब से पहले शिकार वो ही होंगे और बिल पर बी जे पी ने भी अपने हालात समझते हुए कोंग्रेस के साथ समझोता कर लिया है ,बी जे पी को बिल का विरोध करने के लिए सरकार ने पूरा मैदान तैयार कर के दे दिया है . मुस्लिम आरक्षण का तडका जान बूझ कर बी जे पी के विरोध का काराक बना दिया गया है , जनता को यह समझ लेना होगा की तमाम राजनेतिक जमात आज एक बेनर के नीचे आचुकी है अन्ना एंड टीम को भी अब अपना स्टेंड बदल देना चाहिए , क्यों की बी जे पी अपनी राजनेतिक चतुराई का सुबूत पेश करचुकी है उसने पहले बिल का समर्थन कर जनता को धोका दिया की वह भ्रस्टाचार विरोधी मुहीम में जनता के साथ हें , और फिर सरकार के साथ परदे के पीछे डील करली की मुस्लिम आरक्षण के नाम पर वह बिल का विरोध करेंगे. इस तरह कोंग्रेस को मुस्लिम वोटर मिलजायेंगे और बी जे पी को हिन्दू वोटर क्षेत्रीय पार्टियों को नुक्सान होगा , मुलायम माया लालू यह जानते हें की सरकार को बचाए रखना उनके हित में है क्यों की सरकार के पास सी बी आई है. और वह उनके के खिलाफ तुरंत इस्तमाल की जा सकती है , सो केजरीवाल को यह बात समझ लेनी होगी की उसकी टीम को मेनुप्लेट कर लिया गया है . अब वक़्त आगया है की केजरीवाल को भारत माँ का सपूत होने का सबूत देना होगा , अपनी रणनिति में सभी राजनेतिक पार्टियों का विरोध करने के लिए नई रणनीति को नया आयाम देना होगा . जनता के दिलों में भ्रस्टाचार के विरुद्ध जो गुस्सा है वो एक क्रांति का रूप ज़रूर धारण करेगा . क्यों की यह विशव व्यापी सोच में बदलाव का वक़्त हे .माना की भारत में ना समझ तबके की तादात अत्त्या आधिक होने के कारण राजनेतिक पार्टिया गद गद हें. मगर यह उनका वकती भरम मात्र है . इस आन्दोलन का असल समर्थक बुद्धि जीवी वर्ग है जो भारत में पहली बार सडको पर आया है . केजरीवाल को में यकीन दिलाना चाहूँगा की एक बुद्धि जीवी एक हज़ार सिर्फ वोटर जेसे लोगो पर भरी पडेगा , ल ड़ाई लम्बी है होसला और नई निति ज़रूरी है .. इशवर सच के साथ है ,,,जय हिंद ...

सूना था कांग्रेस पार्टी बड़े इंटेलिजेंट लोग हें तो क्या?

में शुद्ध रूप से कलम का सिपाही हूँ , जो भी लिखता सिर्फ देश हित में लिखने की कोशिश करता ,आज कोंग्रेस के नेता जो बयान दे रहे हें की जनता के मंच पर पहुँच कर बी जे पी और दुसरे दलों ने संसद की तोहीन की यह बात मुझे समझने में तकलीफ हो रही है की कोई नेता अगर जनता के मंच पर जा कर जनता को सफाई देता है तो यह संसद की तोहीन है , सूना था कांग्रेस पार्टी बड़े इंटेलिजेंट लोग हें तो क्या उन्हें अभी तक यह समझ नहीं आयी की जनता का गुस्सा असल में इसी हरकत पर है की एक बार वोत्लेने जाते हें और जीत कर फिर उसी जनता को अपने दरवाज़े के फटकने तक नहीं देते , और इन्ही की तर्ज़ पर नोकर शाही आम आदमी से मिलना अपनी शान के खिलाफ समझते हें जो सिर्फ इसी देश में होता है की जनता का नोकर उसे मालिक बन कर कोड़े मारता है , उसे मुर्गा बना है , और उनके हिस्से का माल खुद हड़प करजाता है , मगर आज नेट्वोर्किंग के ज़रिये दुनिया इतनी छोटी गई है की विश्व में कहीं भी कुछ भी जानना आसान होगया है एसे में अब भारतीय जनता का और दो या तीन साल बे वकूफ बनाया जा सकता है
इसके बाद जो ज्वाला फूटेगा वो बहुत ही भयानक होगा , क्यों की तब तक एक नई दुनिया की शुरुआत होचुकी होगी , मेरी राय हे की नेताओ को जनता की बात मान कर अपने प्रति बिगड़ते हालात को संभाल लेना चाहिए , वरना पश्चिम के बिगड़ते हालात भारत को भी प्रेरित करेगें ,,जो भारत के कतई हित में नहीं होगा , आज कोंग्रेस और दोसरी पार्टियां अगर यह समझ रही हें की यह अन्ना और teem का नहीं है. जनता ने अपनी भावनाओं का नाम अन्ना रखलिया है . अन्ना कुछ नहीं है विशुद्ध रूप से सिर्फ जनता की भावनाओ का नाम है , मुझे लगता है की इस लोक शाही देश में नेताओं को राज शाही की लत लग गई है , और हमें यह नहीं भूलना चाहिए की पिछले दिनों तानाशाही का विश्व भर में अंजाम क्या हुआ है ...
में कोई अन्ना समर्थक नहीं हूँ मगर देश की भावनाओ को दरकिनार नहीं कर सकता क्यों की में पहले हिन्तुस्तानी हूँ बाद में और कुछ हूँ ... जय हिंद