Saturday, January 24, 2015

ओबामा की सम्मान यात्रा का भारत को नफा, नुकसान।


मौजूदा दौर में दक्षिण एशिया और पूरब पश्चिम की आर्थिक लड़ाई चरम पर है।
ऐसे में ओबामा की भारत यात्रा के कई कोण बनते हैं। भारत का अमेरिका की ओर झुकाव चीन और रूस के बीच बढ़ता सहयोग, मित्रता व् व्यपार भारत के परम्परागत मित्र रूस का ध्यान भारत की और आकर्षित करने में सफलता प्राप्त कर सकता है। दूसरी ओर चीन को सीमाओ पर सैयम व्  पाकिस्तान की ओर झुकाव, पाकिस्तान को फौजी, आर्थिक डब्लपमेंट में मदत दे कर भारत पर कूटनीतिक दबाव की रणनीति में बदलाव को मजबूर कर सकता है। भारत अमेरिका की बढ़ती नज़दीकियाँ चीन का दक्षिण एशिया पर एक छत्र राज और दक्षिण एशिया  से नेचुरल रिसोर्सिस के दोहन का सपना धूमिल कर सकता है। मगर महत्पूर्ण यह भी है की भारत का यह दांव कहीं उलटा तो। अमेरिका का ट्रेक रिकॉर्ड यह कहता है कि अमेरिकी कंपनियां जहां जाती हैं वहाँ की डोमेस्टिक ढांचे की परवाह किये बगैर अंधाधुन्द दोहन करती हैं। सामाजिक स्तिथि की परवाह किये बगैर व्यापारिक रणनीति के चलते कल्चरल बदलाव कर अपने व्यापार के लिए फर्टाइल ज़मीन तैयार करती हैं। उनके इस कार्य में अमेरिकी सरकार कूटनीतिक दबाव बनती है और कंपनियों के समर्थन में भरपूर सहयोग करती हे। अगर भारत में ऐसी स्तिथि पैदा होती है तो सामाजिक टकराव बढ़ने के हालात पैदा हो सकते हैं। ज्ञात रहे खाड़ी के देशो में हो भी रहा है।  खाड़ी के देशो में भी अमेरिका दोस्त बन कर ही आया था। खतरा नंबर दो। ek ही तीर से दो निशाने शाधने के लिए चीन को अलग थलग करने के लिए अमेरिकी रणनीतिकार चीन के साथ भारत को मोहरा बना कर रूस और चीन पर कूटनीतिक दबाव बनाने की कोशिश कर सकते है।  इन दिनों चीन द्वारा दी जा रही आर्थिक टक्कर को सिमित करने के कोशिशो में भारत चीन के बीच तनाव को बढ़ावा दे कर अपने हित साधने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। फिल हाल तो मेरे आंकलन में ओबामा का दौरा मोदी के अमेरिकी शो जैसा ही प्रतीत हो रहा है।  और किसी बड़ी घोषणा की संभावना ना के बराबर है। हाँ मगर में बड़ी बारीकी से भारत के इस नए चलन को देखने और समझने की कोशिश कर रहा हूँ। क्यों कि एक तरफ संघ परिवार का पश्चिम प्रेम और दूसरी और भारत के परम्परागत हितों के बीच मोदी सरकार किस करवट बैठती है देखना होगा। जय हिन्द 

No comments:

Post a Comment