Tuesday, May 5, 2015

ऐसा प्रतीत होता है जैसे भारत में पत्रकारों का अकाल पड़गया हो।

चीन यात्रा से पहल ही मीडिया ने पुनरवर्त्ती करते हुए कामयाबी के नगाड़े बजा दिए हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे भारत में पत्रकारों का अकाल पड़गया हो। या जनता के प्रति जवाब देही पूर्णतः समात होगई हो। किसी विदेश दौरे से पहले नीतियों पर प्रकाश डालने के बजाये दौरे पर मिलने वाली चाय पकोड़े बिस्तर वहां सेर सपाटे के संसाधनो की चर्चा शोर मचा मचा कर करते हैं। आइये हाल ही में कुछ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाये गए कदमो पर नज़र शानी करते हुए इस दौरे को देखते हैं।
हाल ही में भारत और अमरीका के बीच सहमति हुई कि अपनी सेनाओं की ज़रूरतों के लिये एक दूसरे के सैनिक अड्डों का उपयोग किया जाये। यह सूचना भारत की प्रभावशाली वेबसाइट defencenews.in द्वारा दी गयी।
इस सहमति के ब्योरे गोपनीय रखे जाते हैं। इतना ही मालूम है कि अब फारस की खाड़ी में मौजूद भारतीय सैनिक जहाज़ अमरीकी सप्लाई जहाजों के ज़रिये ईधन भर सकेंगे।
मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि यह समझौता गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत को जोखिम में डाल सकता है जिसका पालन भारत लंबे समय से करता आया है। समझौते के समर्थक कहते हैं कि सन् 2005 में हस्ताक्षरित रणनीतिक सहयोग संबंधी संधि के परिणामस्वरूप भारत को लगभग 10 अरब डालर मूल्य के आधुनिक अमरीकी उपकरण मिले। इस प्रकार अमरीका के साथ सैनिक सहयोग काफी लाभदायक हो सकता है।
संभव है कि फारस की खाड़ी में तैनात भारतीय जहाज़ उदाहरण के लिये बहरीन में स्थित अमरीकी नौसैनिक अड्डे में ईधन भरने और यहां तक कि मामूली मरम्मत करने के लिए जायेंगे। संभव है कि संयुक्त अमरीकी-भारतीय नौसैनिक अभ्यास आयोजित किये जायेंगे। लेकिन मेरे विचार से इन देशों की, नये समझौते पर काम की कोई दूसरी संभावना नहीं है।
निस्संदेह अमरीका भारत के सैनिक अड्डों का उपयोग करना चाहता है, खासकर चीनी प्रभाव की रणनीतिक रोक-थाम के लिये।
अब ऐसे हालात में प्रधानमंत्री के चीन दौरे से ज़्यादा अटकलें लगाने से कुछ हासिल नहीं होगा उपरोक्त कारणों के चलते ही चीन ने खुल कर पाकिस्तान का समर्थन किया है। भारतीय मीडिया प्रचारित अकारण ही दौरे की कामयाबी की सम्भावनाओ के ढोल पीट रहा है। 

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