Tuesday, October 27, 2015

वाशिंगटन को चीन के साथ उलझने के लिए एक मोहरे की ज़रुरत है

एक जायज़ा लेते हैं तीसरे विश्व युद्ध के बनते हालातो पर।

सबसे पहले सीरिया > सीरिया में रुसी फौजे ''ईसिस'' के खात्में के बिलकुल नज़दीक पहुँच गई हैं और सीरिया के दुसरे सरकार विरोधी गुट भी गुटने टेकने के बिलकुल करीब है। मगर सउदिया अभी भी सिया सुन्नी का खेल अमेरिका की शह पर खेलने की कोशिशों में लगातार बना हुआ है ताकि छेत्र में शांति न हो और अमेरिका खाड़ी में बना रहे। मगर रूस की चुनौती अमेरिकी नीतियों के खिलाफ मुखर हो चुकी हैं और अमेरिका के पैर उखड रहे हैं।

अब थोड़ा बढ़ते हैं मध्य एशिया की ओर> रूस चीन ईरान का मानना है की अब ''ईसिस'' लड़ाके अफगनिष्ठान की ओर भाग रहे हैं। और वहाँ नई भर्ती भी कर रहे हैं आने वाले दिनों में तालिबान के साथ मिल कर एक बड़ा खेल शुरू करने के फ़िराक में है। रूस का मानना है की ''ईसिस'' का आंतक  अफगान से रूस और भारत को खतरा पैदा करेगा। दरअसल रूस अफगानिस्तान में भी सीरिया की तर्ज़ पर हमले कर के ''ईसिस'' और तालिबान के पैर उखाड़ना चाहता है जिसके बाद इस छेत्र में अमरीकी चुनौती ख़त्म हो जायेगी। मगर इस छेत्र में अमरीकी हित इस वक़्त आखरी किरण की तरह है क्योंकि मसला अफगान नहीं रूस और चीन पर दबाव बनाये रखने के लिए अफगान पाकिस्तान अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण ठिकाना है।

अब ज़िक्र चीन का आया तो हमें यह भी समझना होगा की चीन समस्त एशिया के साथ साथ यूरोप में भी अपने कारोबारी पांव जमा रहा है दूसरी ओर रूस के गुर्बाचोफ़ के जैसा कोई मोहरा चीन को रोकने या तोड़ने के लिए अमेरिका अभी तक नहीं खोज पाया है। जबकि जापान में अमरीकी इन्वेस्टमेंट वाली कंपनिया और खुद अमेरिका की निजी कंपनियों को चीन से कड़ी चुनौती मिल रही है। रूस और चीन के गठजोड़ ने पूरी एशिया में अमेरिकी नकली डॉलर के खेल को ख़त्म करने की जैसे ठानली है और विकल्प के तोर पर बिर्क्स का गठन कर दिया है जिसके जरिये डॉलर की मौत तय हो चुकी है।
अब गर डॉलर गए वक़्त की कहानी बनता है तो अमेरिका भी गए वक़्त की कहानी हो जायेगा मगर क्या इतनी आसानी से अमेरिका मैदान छोड़ देगा या कुछ नए उपाए नए दोस्तों को खोजेगा बात नए की चली तो याद आया भारत भी तो अमेरिका का नया मित्र है।

अब थोड़ा भारत को ओर भी चलें।> भारत का रुझान अचानक वाशिंटन की ओर क्यों बढ़ा क्या वो भारत की ज़रुरत है या कोई बड़ा खेल ?
अगर हम थोड़ा बारीकी सी अध्यन करे तो दिखाई पड़ता है की अचानक दक्षिण एशिया खास तोर पर चीन नेपाल भारत पाकिस्तान में हलचल बढ़ गई है। जैसे पाकिस्तान को अमरीका ने तालाब किया है बलोचिस्तान की में आवाज़े बुलंद हो रही हैं भारत में सामजिक बटवारा हो रहा है असंतोष चारो तरफ दिखाई देने लगा है राष्ट्रवादी, सेक्युलर, पाटीदार, साऊथ नॉन वेजेटेरियन,मुस्लिम , दलित , स्वर्ण , अचानक पूरे उफान पर आगये हैं। क्या यह महज़ इत्तफाक है या इसके पीछे कोई बड़ा खेल है।
अचानक अरुणांचल प्रदेश में 6 अरब डालर के एक राजमार्ग के निर्माण की योजना बनाने का काम लगभग पूरा कर लिया की खबर आगई है और साथ-साथ मोदी ने दक्षिण चीन सागर में स्थिरता के आह्वान में अमरीका का समर्थन किया है उधर 27 अक्तूबर को अमेरिकी सेना के लार्सन नाम के पोत ने चीन के नानशा द्वीप समूह और उसके अधीन चट्टानों के पास समुद्री क्षेत्र में प्रवेश किया। इसके बारे में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू खांग ने कहा कि अमेरिकी पोत की इस कार्रवाई से चीन की प्रभूसत्ता और सुरक्षा तथा द्वीपों पर रह रहे लोगों और संयंत्रों की सुरक्षा को खतरे में डाला गया है । और इससे क्षेत्रीय शांति व स्थिरता को भी नुकसान पहुंचा है। चीन ने अमेरिकी सेना की इस कार्रवाई पर सख्त आपत्ति दर्ज करने के साथ विरोध किया है।
 चीन ने अपने प्रादेशिक प्रभुसत्ता, सुरक्षा और न्यायपूर्ण और सामान्य समुद्री हितों की रक्षा करता है। किसी भी देश की जान-बूझकर उत्तेजना का दृढ़ता के साथ निपटारा भी करेगा।

चलो अब वापस भारत आते हैं > मेरी पूरी पड़ताल का अर्थ यह की तीसरे विश्व युद्ध की पेश कदमी का कारण डॉलर और चीन हैं चीन के समर्थन में ही रूस सिरया पहुंचा है और अफगानिस्तान पहुँचने वाला है। मुझे डर है की डॉलर के समर्थन में भारत को मोहरा तो नहीं बनाया जा रहा है। क्यों की अब वाशिंगटन को चीन के साथ उलझने के लिए एक मोहरे की ज़रुरत है और मोहरा भी ऐसा जो चीन को उलझा सके जिसके कमांडर का विरोध ना हो जो कदम पीछे ना खींचे और पेंटागन उसकी पुस्त पनाही करे। में भारत के समस्त वासियों से आवाहन करता हूँ की हमें हमरी आर्मी हमारा देश और हम सबको एकजुटता का परिचय देने की ज़रुरत है। जय हिन्द 

6 comments:

  1. मोदीजी की लद्दाख यात्रा को अचानक हुआ बताकर, जिस सोची समझी रणनीति के तहत बहुप्रचार हुआ है,वह कुछ अलग ही तस्वीर पेश करता है। इस दौरे का उद्देश्य सामरिक कतई नहीं लगता है। यह तो घरेलू जनता खासकर चुनावों को ध्यान में रख पूर्व नियोजित है, न कि अचानक हुआ है।

    मोदीजी बहुत बड़े खिलाड़ी हैं। आज के दौर में वे *छद्म युद्ध या छाया युद्ध* के एकमात्र नौटंकबाज हैं। उनका हर निर्णय चुनावी राजनीति के मैदान में विरोधियों को चारों खाने चित्त करने के लिए ही होता है।

    देश भर में उनके विरोधी कोरोना,प्रवासी मजदूर, महंगाई,नेपाल व लद्दाख जैसे मुद्दों पर जमकर उनकी घेराबंदी कर रहे हैं। मोदी ने इन सबसे एक बार में ही निपटने का मन बना लिया, लगता है। मोदीजी जो करने जा रहे हैं, वह देश को नए सिरे से परिभाषित कर सकता है।

    लद्दाख में मोदी के शब्द बता रहे हैं कि माँओं के हजारों लाल अपना बलिदान देने तैयार रहें। मोदी जानते हैं कि इस बलिदान से पैदा हुआ देशभक्ति का ज्वार उन्हें को सर्वकालिक महान बना देगा। साथ ही भाजपा को कई दशक तक निष्कंटक राज दिला देगा। यह अलहदा बात है कि काश्मीर, लद्दाख, सिक्किम व अरूणाचल के बगैर देश का मानचित्र अलग ही दिखाई देगा।

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  2. आपकी लिखी बातें जबरदस्त है आपकी पकड़ जबरदस्त है जियोपोलिटीक्स पर

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  3. ਬਹੁਤ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਜੀ

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